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Acharya Giriraj Kishor Update: Acharya Giriraj Kishor आचार्य गिरिराज किशोर जिन्होंने रामलला को टाट से मुक्ति दिलाने की लड़ाई लड़ी लेकिन अपने ‘मोक्ष’ की परवाह नहीं की।

Acharya Giriraj Kishor Update: Acharya Giriraj Kishor आचार्य गिरिराज किशोर जिन्होंने रामलला को टाट से मुक्ति दिलाने की लड़ाई लड़ी लेकिन अपने ‘मोक्ष’ की परवाह नहीं की। 

Acharya Giriraj Kishor Update:

अयोध्या के मंदिर में भगवान राम के बालक रूप की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। राम की जन्मस्थली पर बाबरी मस्जिद बनाकर मुस्लिम आततायियों ने जो अत्याचार किया था, उससे भारतीय जनमानस के स्वाभिमान को गहरी ठेस पहुंची थी। आचार्य गिरिराज किशोर ने उसी स्वाभिमान को जगाने में अपना जीवन खपा दिया।

नई दिल्ली: पिछले वर्ष देश ने एक सुखद रिकॉर्ड बनाया। रिकॉर्ड है देहदान का। मृत्यु के बाद शरीर के अंगों का उपयोग किसी मरीज के जीवन बचाने या फिर उनके किसी अंग के अभाव को पूरा करने में हो जाए, इसका संकल्प करने वालों की तादाद देश में पहली बार चार अंकों में पहुंच गई। पिछले वर्ष कुल 1,028 लोगों ने देह दान किया। देश में देहदान की परंपरा अभी भी जोर नहीं पकड़ सकी है। इसके पीछे का मूल कारण है धार्मिक नियम। हमारा देश हिंदू बहुल है। हिंदू सनातन धर्म के आदेशों से शासित हैं। सनातन में मोक्ष का सर्वोच्च महत्व है। मृत्यु के बाद आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो, इसके लिए शव का विधिवत दाह संस्कार करने और फिर श्राद्ध का विधान है। इस कारण हिंदुओं में यह धारणा गहरे पैठी है कि शव का अंतिम संस्कार नहीं हो तो मृतक की आत्मा भटकती रहती है, उसे मोक्ष नहीं मिल पाता है।

Acharya Giriraj Kishor Overview

Name of the Article  Acharya Giriraj Kishor Update
Type of the Article आचार्य गिरिराज किशोर जिन्होंने रामलला को टाट से मुक्ति दिलाने की लड़ाई लड़ी
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समाज की सीख के लिए धर्म की सीमा भी तोड़ी:

इसी तरह दूसरे धर्मों में भी मृत्यु के बाद शव का क्या किया जाए, इसके अलग-अलग नियम हैं। संबंधित धर्म के लोग मृतक के शव का वही विधान करते हैं जो उन्हें धार्मिक नियम बताते हैं। लेकिन कई ऐसे भी महापुरुष होते हैं जो बदलती परिस्थितियों में समाज को नई दिशा देने के लिए धार्मिक परंपराओं के दायरे से निकल जाते हैं। आचार्य गिरिराज किशोर भी वैसी ही एक महान आत्मा का नाम है। वो अब इस दुनिया में नहीं रहे।

राम मंदिर आंदोलन के सूत्रधार रहे आचार्य गिरिराज किशोर:

आज जब अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के कार्यक्रम से पूरा देश राममय हो गया है और दूसरी तरफ रिकॉर्ड देहदान की खबर आई है, तब आचार्य गिरिराज किशोर को याद करना बेहद प्रासंगिक है। आचार्य गिरिराज किशोर की धार्मिक आस्था इतनी प्रबल थी कि उन्होंने जीवनभर ब्रह्मचर्य का पालन किया। कर्मकांड के प्रति गहन आस्थावान आचार्य गिरिराज किशोर ने अपने देहदान का संकल्प लिया था और जब उनका निधन हुआ तो उनकी इच्छा के मुताबिक उनके शव का दान कर दिया गया।

”मंदिर निर्माण के द्वारा राष्ट्र का स्वाभिमान जागृत होगा और स्वाभिमानी राष्ट्र ही उन्नति कर सकता है, अन्य कोई नहीं।”

आचार्य गिरिराज किशोर

हिंदुत्व और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक:

आचार्य गिरिराज किशोर हिंदुत्व और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक थे। वो आजीवन कुंवारे रहे और सामाजिक कल्याण के लिए कठोर संघर्ष किया। उन्होंने निराश्रित बच्चों की शिक्षा के लिए विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की। दूसरी तरफ, उन्होंने सनातन की रक्षा के लिए ईसाई मिशनरियों से भी खूब लड़ाई लड़ी। इसाई मिशनरी देश के कोने-कोने में धोखाधड़ी से धर्मांतरण करते रहे हैं। यह आज भी धड़ल्ले से जारी है। किशोर ने गोरक्षा आंदोलन का भी नेतृत्व किया।

पथ प्रदर्शक रहे आचार्य गिरिराज किशोर:

आचार्य गिरिराज किशोर ने आरएसएस, वीएचपी और बजरंग दल नेताओं की एक पूरी पीढ़ी का मार्गदर्शन किया। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में कई प्रमुख योगदान दिए। किशोर हिंदी साहित्य, इतिहास और राजनीति विज्ञान में मास्टर डिग्री हासल की थी। वो साहित्य और संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। उन्होंने आरएसएस के प्रभाव में आजीवन कुंवारे रहने का संकल्प पूरा किया। 1948 में सरकार ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया तो किशोर को 13 महीने जेल में बिताने पड़े।

आजादी से 26 साल पहले उत्तर प्रदेश में हुआ था जन्म:

श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन के सूत्रधार रहे आचार्य गिरिराज किशोर का जन्म 4 फरवरी, 1920 को उत्तर प्रदेश के एटा जिले के मिसौली गांव में हुआ था। वो जीवनपर्यंत संघ प्रचारक के रूप में कार्यरत रहे। आचार्य गिरिराज किशोर की विचारधारा का विश्व हिंदू परिषद (विहिप) पर महत्वपूर्ण प्रभाव था। वो हिंदुत्व और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रबल समर्थक थे।

व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण का सिद्धांत:

वरिष्ठ पत्रकार प्रभु चावला से बातचीत में आचार्य गिरिराज किशोर ने स्पष्ट कहा, ‘मंदिर निर्माण के द्वारा राष्ट्र का स्वाभिमान जागृत होगा और स्वाभिमानी राष्ट्र ही उन्नति कर सकता है, अन्य कोई नहीं।’ जब चावला ने कहा कि देश का निर्माण आर्थिक प्रगति से होता है तो किशोर ने कहा ऐसा नहीं है। वो कहते हैं, ‘इट इज नॉट द गोल्ड दैट मेक द नेशन, इट इज मैन हू मै द नेशन।’

उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास से ज्यादा जरूरी है व्यक्ति उन्होंने कहा कि आर्थिक विकास से ज्यादा जरूरी है व्यक्ति निर्माण का कार्य और मंदिर निर्माण से स्वाभिमान का निर्माण होगा। स्वाभिमानी व्यक्ति ही समाज में साकारात्मक योगदान दे सकता है। आचार्य गिरिराज किशोर ने बाबरी मस्जिद को पराधीनता का चिह्न बताया और पूछा कि आजादी के बाद कांग्रेस की सरकारों को गुलामी के ऐसे चिह्नों को मिटा देना चाहिए था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उस वक्त गिरिराज किशोर विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष थे।

देहदान कर दिया बड़ा सामाजिक संदेश:

हिंदू अधिकारों, सामाजिक कल्याण और सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के प्रति किशोर की अटूट प्रतिबद्धता ने वीएचपी पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ा। किशोर ने विहिप की युवा शाखा बजरंग दल के प्रमुख संरक्षक के रूप में भी कार्य किया। गिरिराज किशोर का 13 जुलाई, 2014 की रात विहिप मुख्यालय में निधन हुआ था। तब वो 94 वर्ष थे। आचार्य गिरिराज किशोर की इच्छा के मुताबिक उनका शव दधीचि देहदान समिति के माध्यम से दिल्ली के आर्मी मेडिकल कॉलेज को दान कर दिया गया था। निर्माण का कार्य और मंदिर निर्माण से स्वाभिमान का निर्माण होगा। स्वाभिमानी व्यक्ति ही समाज में साकारात्मक योगदान दे सकता है। आचार्य गिरिराज किशोर ने बाबरी मस्जिद को पराधीनता का चिह्न बताया और पूछा कि आजादी के बाद कांग्रेस की सरकारों को गुलामी के ऐसे चिह्नों को मिटा देना चाहिए था, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। उस वक्त गिरिराज किशोर विश्व हिंदू परिषद के उपाध्यक्ष थे।

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